Thursday, August 21, 2008

ऊप्स

जल्दी सुबह उठने के कई फायदे हैं। लेकिन सुबह जल्दी ब्लॉग लिखने के कुछ नुक्सान भी हैं। जैसे आज मेरे साथ हुआ। मैंने अपनी पिछली पोस्ट में लिखा कि आज राजस्थान में पेट्रोल पम्पों की हड़ताल का दूसरा दिन है। पर हड़ताल ख़त्म हो चुकी थी।
तो आइन्दा से कोशिश करूँगा कि सुबह अखबार पढ़े बिना कोई पोस्ट न लिखूं।
पर मुझे खुशी है कि हड़ताल की वजह से एक और दिन डिस्टर्ब होने से बच गया। और उम्मीद (झूठी उम्मीद ) ये की आगे से ये बेवजह के बंद , चक्का जाम ( मतलब कि तथाकथित सामाजिक चेतना अभियान ) नहीं होंगे। और मुझे एक और दिन बंद पे अपना ब्लॉग नहीं लिखना पड़ेगा।
आज सुबह की पोस्ट के लिए ........................... ऊप्स।

हड़ताल, बंद और चक्का जाम

झील पे पानी बरसता है मेरे देस में । खेत पानी को तरसता है मेरे देस में।
दीवानों और पागलों के सिवा और कौन हंसता है मेरे देस में।

और मुझे फिर से हँसी आ रही है।

क्योंकि आज राजस्थान में पेट्रोल पम्पों की हड़ताल का दूसरा दिन है। सुनने में आ रहा है की आने वाले वक्त में कुछ और तरह की हड़तालें और चक्का जाम प्रस्तावित हैं।

तो एन्जॉय कीजिये इन हड़तालों को, चक्का जामों को, बन्दों को और अगर वक्त मिल जाए तो कभी कभी इस देश के बारे में भी सोच लिया करें या उसके लिए भी हड़ताल करनी पड़ेगी ।

Tuesday, August 19, 2008

इग्नोर मत करना, वरना १२ साल के लिए अनलकी हो जाओगे.

टुडे इज साईं बाबा'ज बर्थडे । इग्नोर मत करना नहीं तो १२ साल तक अनलकी हो जाओगे। ११ लोगों को ये एस.एम्.एस. भेजो। रात तक अच्छी ख़बर आएगी। नोट जोकिंग। ट्राई दिस।
ये मेसेज साल में मेरे पास कम से कम २० बार अत है। और ऐसे ही कई मेसेज कभी किस नाम से कभी किस नाम से आते हैं । कई बार तो ये भी लिखा होता है की ये मेसेज प्रभु के दरबार से सीधा आ रहा है। तो प्रभु की इस कृपा को नमस्कार कर के मैं मेसेज फॉरवर्ड कर देता हूँ। क्या पता कब प्रभु की दया सीधे मुझ पे हो जाए। अभी तक तो हुई नहीं पर कभी न कभी ज़रूर होगी ये ही सोच के फिर से मेसेज फॉरवर्ड कर देता हूँ।
पर कभी कभी सोचता हूँ कि इस सब से किसी को फायदा हो या न हो पर मोबाइल कंपनियों को फायदा ज़रूर होता है। चलिए किसी को तो फायदा होता ही है।
विशेष सूचना :-
फॉरवर्ड दिस ब्लॉग पोस्ट तो ११ पीपुल। इग्नोर मत करना वरना १२ साल के लिए अनलकी हो जाओगे।
इस ब्लॉग पोस्ट पे कमेन्ट करे। इग्नोर मत करना वरना १२ साल के लिए अनलकी हो जाओगे।
इस ब्लॉग के बारे में और लोगों से बात करे। इग्नोर मत करना वरना १२ साल के लिए अनलकी हो जाओगे।
रोजाना इस ब्लॉग की पोस्ट पढ़ा करें। इग्नोर मत करना वरना १२ साल के लिए अनलकी हो जाओगे।
ये मेसेज सीधे 'इंडियन ड्रीम्स' ब्लॉग से आ रहा है।
इग्नोर मत करना।
कुछ साल बाद अच्छी ख़बर आ सकती है।
ट्राई दिस। नोट जोकिंग।

Friday, August 15, 2008

वक्त वक्त का फेर

देखिये जी ये सब वक्त वक्त की बात है, वक्त की वजह से ही बड़े बड़े करोड़ पति, रोड पतियों में तब्दील हो गए। पर आज के दिन मुझे पतियों की बात नहीं करनी चाहिए, क्योंकि आज तो स्वतंत्रता की बात करनी है ............... की नहीं।
मैं कह रहा था कि वक्त के साथ सब कुछ बदल जाता है, अब जैसे देखिये अगर आज १५ अगस्त नहीं होता और १४ फरवरी होता, या मित्रता दिवस होता, तो लोग एस. एम. एस की भीड़ लगा देते पर आज १५ अगस्त था, इसलिए मेरे मोबाइल के इन्बोक्स में बस दो एस एम एस ए हैं पहला कल रात को भेजा गया था लेट पहुँचा और दूसरा मोबाइल कंपनी की ओर से भेजा गया था।
वक्त वक्त की बात है।

(वैसे सही सही बताऊँ की ये मैसेज अभी अभी मुझे मेरे मोबाइल पे मिला था। )

Thursday, August 14, 2008

गर्व करने के कुछ और कारण

अभी कुछ देर पहले मैंने आपको गर्व करने का एक कारण बताया था, अब कुछ और कारणों की बात कर लेते हैं, भारत किसी और चीज़ पर इतना गर्व नहीं कर सकता जितना सहनशीलता पर। १९४७ में भारत आजाद हुआ आजाद होते ही हमारे पडौसी देश ने (मतलब छोटे भाई ने ) हम पर हमला कर दिया। और चूंकि हम नियमों से चलने वाले (अर्थात अनुशाषित ) व्यक्तित्व के स्वामी हैं इसलिए हमने पाकिस्तान को हराते हुए भी संयुक्त राष्ट्र को बीच बचाव के लिए बुला लिया। नतीजा कश्मीर का एक हिस्सा हमारे छोटे से पडौसी देश (मतलब छोटे भाई) ने दबा लिया।

वक्त बीता और १९६२ आ गया, हमारे दूसरे पडौसी देश ( मतलब बड़े भाई ) ने हम पे हमला कर दिया और हम 'हिन्दी चीनी भाई भाई' बोलते रहे, और हमारे दूसरे पडौसी देश ( मतलब बड़े भाई ) ने भी कुछ ज़मीन दबा ली। अफ़सोस तो बहुत हुआ पर एक संतोष ये ही था की घर की ज़मीन घर में ही रह गयी, कभी छोटे भाई (एक ही मां के दो बेटों में से एक ) के पास तो कभी बड़े भाई (हिन्दी चीनी भाई भाई वाले भाई साब ) के पास।

फिर और वक्त बीता, वैसे वक्त तो बीतता ही है इसकी चाल को कोई नहीं रोक सकता, पर हमारे पडौसी की चाल को हमने रोक लिया। मतलब १९६५ में फिर से हमारे पडौसी देश ने पे हमला कर दिया और हम 'हिन्दी चीनी भाई भाई' बोलते रहे, और हमारे दूसरे पडौसी देश ( मतलब बड़े भाई ) ने भी कुछ ज़मीन दबा ली। अफ़सोस तो बहुत हुआ पर एक संतोष ये ही था की घर की ज़मीन घर में ही रह गयी, कभी छोटे भाई (एक ही माँ के दो बेटों में से एक ) के पास तो कभी बड़े भाई (हिन्दी चीनी भाई भाई वाले भाई साब ) के पास।
फिर और वक्त बीता, वैसे वक्त तो बीतता ही है इसकी चाल को कोई नहीं रोक सकता, पर हमारे पडौसी की चाल को हमने रोक लिया। मतलब १९६५ में फिर से हमारे पडौसी देश ने हम पर हमला कर दिया, हमने मुहं तोड़ जवाब दिया, और हमारी फौजों ने दुश्मन के घर में घुस कर उसे ये जवाब दिया। पर फिर से हमने क्या पाया पता नहीं पर क्या खोया पूरी दुनिया को पता है, हमारे प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री को।
वक्त बीतता है उसे तो बीतना ही है मैं और आप उसे नहीं रोक सकते हैं, और हम इस बार भी हमारे पडौसी को नहीं रोक पाये पर इस बार हमने हमारे पडौसी मुल्क को दो टुकडों में बाँट दिया, पूर्वी पाकिस्तान का नाम नक्शे पे से गायब हो गया। बंगला देश का उदय हुआ। पाकिस्तान के लिए करारी चोट, उनके ९५ हज़ार से ज़्यादा सैनिक हमारे पास युद्ध बंदी की रूप में थे। पर हमने क्या पाया इन ९५ हज़ार सैनिकों के बदले में हम हमारे कश्मीर को आज़ाद नहीं करा पाए।
९० के दशक में हमने क्या क्या खोया, शायद उन के बारे में बार करना यहाँ बेमानी है। फिर हुआ कारगिल । हमारे पडौसी देश ने घुसपैठ करके हमारी ज़मीन पे फिर से कब्ज़ा जमा लिया। हमने उन्हें फिर से खदेड़ दिया, पर कीमत भी चुकानी पड़ी। ५०० से ज़्यादा हिन्दुस्तानी जवानों ने अपनी कुर्बानी दी। जिस पर हर हिन्दुस्तानी फक्र कर सकता है। पर क्या हमने वाकई हिसाब बराबर कर लिया, एक देश ने दूसरे देश पे हमला कर दिया और हमने खली उनको खदेड़ कर अपना कोटा पूरा कर लिया। इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं था की ये सब हुआ तो क्यों और इसके लिए जिम्मेदार मुल्क को क्या सज़ा मिलनी चाहिए। अगर हमारी जगह अमेरिका , रूस या इजराइल होता और कोई उन पर यूँ हमला कर देता और वो यूँ ही बैठे रहते....... । बिल्कुल नहीं इसीलिए तो मुझे गर्व है की हमारी सहन शक्ति का मुकाबला दुनिया का कोई देश नहीं कर सकता। चाहे हमारे हवाई जहाज को कोई हाई जैक ही क्यों न करले ।
मगर वाह रे मेरे देश , मेरे देश की सहन शक्ति। हम फिर भी चुप बैठे रहे। मुझे वाकई में इतना गर्व है अपनी सहन शक्ति पे की मेरे पास शब्द ही नहीं हैं।
इस बीच एक बार वो देश जिसे हमने आज़ादी दिलवाई थी मतलब की बंगला देश उसने भी हमारी सहन शक्ति की पूरी परीक्षा ली और मुझे गर्व है की इस बार भी हम अपनी इस परीक्षा में खरे उतरे भले ही हमारी सेना के कुछ लोगों की बंगला देशी सेना वाले यातनाएं दे के हत्या ही कर दे । लेकिन हम यहाँ भी पूरे संयम से काम लेते हैं, हमने नियमों के अनुसार ( शायद जिनेवा समझौते के अनुसार) रिपोर्ट दर्ज करवा दी। और उन क्षत विक्षत शवों को उनके परिजनों को सौंप दिया। लेकिन हमने तब भी धीरज नहीं खोया।
धीरज हमने तब भी नहीं खोया जब हमारी संसद पे हमला हुआ था। हमारे कुछ सिपाहियों के खेत रहने के बाद भी हमने संयम नहीं खोया, हमने किसी प्रकार की कोई भड़काने वाली कार्रवाई नहीं की । हाँ बस अपनी सेना को सीमा पर ले जा के खड़ा कर दिया। और पूरे धीरज के साथ पडौसियों को सूचित कर दिया की शायद हम आप पर हमला कर सकते हैं। पर मेरे महान देश तू इस परीक्षा की घड़ी में भी खरा उतरा । हमने इस बार भी धीरज नहीं खोया। मेरे गर्व की कोई सीमा नहीं है।
जब जयपुर में बम पते तब भी हमने पूरे धीरज का परिचय दिया। बेंगलुरु में भी यही किया और अहमदाबाद में भी यही किया । तो इस से बड़ा गर्व करने का और क्या कारण चाहिए। मेरे गर्व की कोई सीमा नहीं है।
(परन्तु इस ६१ वें स्वतंत्रता दिवस पर मेरी यही इच्छा है की भविष्य में कभी मुझे इस बारे में गर्व करने का कोई मौका न मिले )
आखिर में आप सभी को १५ अगस्त की बहुत बहुत शुभ कामनाएं ।

गर्व करने का एक और कारण

मुझे गर्व है और ये गर्व दिन पर दिन बढ़ता ही जा रहा है, मैंने बहुत कोशिश की पर क्या करूँ, दिल है की मानता ही नहीं है। चलिए मुद्दे की बात पे आते हैं की गर्व है तो किस बात का। तो देखिये जी बात ऐसी है की कुछ साल पहले की बात है की मैंने पेपर में पढ़ा कि दिल्ली में एक विदेशी महिला एक गंदे नाले की बदबू से बेहोश हो गयी। एक पल को पढ़के बुरा लगा पर जब मैंने ख़बर का छुपा हुआ मतलब समझा तो मेरा सीना गर्व से चौड़ा हो गया, मैं सोचने लगा कि हम उस विदेशी महिला से कितने महान हैं, हमारी सहन शक्ति कितनी ज़बरदस्त है, हम लोग बचपन से लेकर जवानी से लेकर बुढापे तक नाना प्रकार की बदबूएँ सूंघते हैं पर हमारी सहन शक्ति की दाद देनी होगी कि मैंने कभी नहीं सुना कि फलां फलां व्यक्ति 'नाले' या 'नाली' की बदबू से बेहोश हो गया या हो गयी। चाहे वो बच्चा हो या बड़ा सभी इस तरह की छोटी मोटी बदबूएँ तो बर्दाश्त करते रहते हैं। और वो विदेशी........ हुंह ........ ये मुहं और मसूर की दाल। और मैं अपने देश की सहनशीलता की व्याख्या में खो गया। कितने महान हैं हम, कितने महान हैं हमारे पूर्वज, कितनी महान होगी हमारी आने वाली नस्लें।
कुछ दिनों बाद मैंने सुना की आतंकवाद इतना बढ़ गया है की आतंकवादी किस रूप में हमला करदें कह ही नहीं सकते, हो सकता है की वो किसी जहरीली गैस से हमला कर दे तो डोंट चिंता नोट फिकर, वो गैस हमारा कुछ नहीं बिगाड़ पायेगी, हमारे नाले, नालियों से उन गैसों से ज़्यादा बुरी बदबू निकलती है। मैं तो कहता हूँ कि दूसरे देशों को भी हमसे कुछ सीखना चाहिए । हमारा देश हमेशा से विश्व गुरु रहा है , इसने कई बातें दुनिया को सिखाई हैं। इस बार भी हमारा ये फार्मूला काम आयेगा।
१५ अगस्त करीब है मतलब कि कल ही है इसलिए मैं गर्व करने के कुछ और कारण ढूंढता हूँ, अगर आपको भी पता चले तो आप भी जन जन तक इस सूचना को प्रसारित करें और अपना कर्तव्य पूरा करें।