Sunday, July 10, 2011

भगवान का इस्तीफा

भगवान ने कहा, ‘‘उठो वत्स।’’
लेकिन मेरी नींद नहीं खुली।
भगवान ने फिर से कहा, ‘‘उठो वत्स।’’
लेकिन मेरी नींद अब भी नहीं खुली।
अबकी बार भगवान ने कुछ जोर से कहा, ‘‘अरे दुष्ट, उठ जा, देख भगवान तेरे सामने खड़े हैं।’’
हड़बड़ा कर मेरी नींद खुली। मेरे सामने साक्षात भगवान खड़े थे। मुझे अपनी आंखों पर भरोसा नहीं हो रहा था, लेकिन ये सच था।
मैंने आंखें मलते हुए कहा, ‘‘मेरे अहो भाग्य, भगवान आपने मुझे साक्षात दर्शन दिये। भगवान मेरा जीवन सफल हो गया। अब मुझे इस संसार का कोई मोह नहीं रहा।’’
भगवान ने कुछ देर रूक कर कहा, ‘‘सही राह पर जा रहे हो।’’
‘‘मतलब।’’
‘‘मतलब ये कि मैं जल्द ही इस्तीफा दे रहा हूं।’’
‘‘क्या, भगवान इस्तीफा देंगे। लेकिन क्यों।’’
‘‘मैंने काफी कोशिश की, लेकिन अब और कोई चारा नहीं।’’
‘‘लेकिन अगर भगवान ही इस्तीफा दे देंगे, तो फिर इस संसार को कौन संभालेगा।’’
‘‘इसका जवाब मेरे पास नहीं है।’’
‘‘क्या? आपके पास जवाब नहीं है। अगर आप नहीं होंगे तो इस संसार के अरबों खरबों प्राणियों को कौन संभालेगा। दीन दुखियों की कौन सुनेगा।’’
‘‘पता नहीं।’’
‘‘आपको पता नहीं! आप भगवान हैं।’’
‘‘बस कुछ दिनों के लिये, उसके बाद नहीं रहूंगा।’’
‘‘लेकिन आप ऐसा नहीं कर सकते। ऐसे तो इस सृष्टि में हाहाकार मच जाएगा।’’
‘‘कुछ नहीं होना, मेरे बिना भी ये दुनिया चल सकती है। वैसे भी आज लोगों के पास इतने साधन और पैसे हैं कि उन्हें मेरी कोई जरूरत नहीं है।’’
‘‘लेकिन ऐसे लोग हैं कितने, बेचारे गरीबों का क्या होगा? उनका मरना तो तय है।’’
‘‘मुझे इसका अफसोस है, लेकिन इस सबके लिये मैं जिम्मेदार नहीं हूं। इसके लिये इंसान खुद जिम्मेदार हूं।’’
‘‘भगवान जी। वो तो मानता हूं कि इंसान बड़ा बिगड़ गया है। बल्कि आज इंसानों की शक्ल में शैतान घूम रहे हैं। लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं कि आप ही साथ छोड़ दें। आप इंसानों को मौका क्यों नहीं देते।’’
‘‘मैंने कितने मौके दिये, लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही। और वैसे भी दुनिया प्रेम की भाषा नहीं समझती।’’
‘‘लेकिन आप ऐसे अपनी जिम्मेदारी से नहीं भाग सकते।’’
‘‘अगर मेरी मांगों की सुनवाई नहीं हुई तो मैं ऐसा ही करूंगा। मैंने कई बार चेताया। कभी कभी प्रदर्शन भी किया लेकिन मेरी मांगों पर कोई सुनवाई नहीं हुई।’’
तभी भगवान का मोबाइल बज उठा। मुझे ताज्जुब तो हुआ लेकिन अभी भगवान ने जो खबर मुझे सुनाई, उसके सामने ये कुछ भी नहीं था।
‘‘हां, मैं इस्तीफा दे रहा हूं.... दरअसल इन्हें प्रेम की भाषा तो आती ही नहीं है.... नहीं, इन्होंने अब तक चढ़ावे की रकम नहीं बढ़ाई है, एक दिन का अवकाश लेकर मैंने देख लिया..... उस दिन सुनामी भी आ गयी, लेकिन ये मानने को तैयार नहीं है.... अब मैं छोड़ रहा हूं.... और साथ ही मेरे डिपार्टमेन्ट के सारे लोग भी..... नहीं हम लोग दो दिन की छुट्टी पर जाएंगे..... उसके बाद भी अगर इन्होने हमारी बातें नहीं मानी तो मैं और पूरा डिपार्टमेन्ट इस्तीफा देगा..... हां ठीक है.... मैं बाद में बात करता हूं....’’
मेरी हालत कुछ ऐसी हो गयी थी जैसे मैं किसी पानी के भंवर में फंस गया हो, और पानी का स्त्रोत नहीं पता लग रहा कि ये किस इलाके का पानी है। मैंने छूटते ही पूछा, ‘‘भगवान एक दिन का अवकाश... सुनामी.... चढ़ावा..... डिपार्टमेन्ट... क्या है ये सब... मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा।’’
‘‘तभी तो तू तुच्छ इंसान है। जब तुझे समझना होता है, तू समझता नहीं है।’’
मैं बुरी तरह से उलझ चुका था। मैंने सरन्डर कर दिया, ‘‘भगवान पहेलियां मत बुझाइये, क्या है ये सब।’’
भगवान जोर जोर से हंसने लगे। फिर अचानक रूक कर बोले, ‘‘काफी समय से मैं इंसानों के प्रतिनिधियों से बात कर रहा हूं कि मेरा और मेरे डिपार्टमेन्ट के सभी लोगों का चढ़ावा बढ़ाया जाए।’’
‘‘चढ़ावा!!!!’’
‘‘हां चढ़ावा.....। हमें भी तो चढ़ावे की जरूरत होती है। क्या हम कम मेहनत करते हैं। साल भर चैबीस घंटे, हर जगह आॅन ड्यूटी। हमने कह दिया कि हमारा चढ़ावा बढ़ा दिया जाए। लेकिन कोई रैस्पाॅन्स ही नहीं मिल रहा। ये प्रेम की भाषा जानते ही नहीं। हमने कई बार चेताया, कहा कि हम पर ध्यान दो, अगर हम रूष्ट हो गये तो फिर ना कहना।’’
‘‘लेकिन बस चढ़ावे के लिये इतना कुछ...’’
भगवान ने मेरी बात काटते हुए कहा, ‘‘बीच में मत बोल आम आदमी। तेरी औकात ही क्या है। हम तेरे प्रतिनिधियों से बात करते हैं, तुझसे नहीं।’’
‘‘तो जब आप हमारे प्रतिनिधियों से ही बात करते हो तो मेरे पास क्यों आए हो।’’
‘‘हा... हा... हा...। तेरे प्रतिनिधि पूरी तरह से साधन सम्पन्न हैं, उन्हें हमारे काम करने या नहीं करने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा, वो तो काम चला लेंगे। पर भुगतना तो तुझे पड़ेगा, इसलिये तुझे चेताने आए हैं। तुझे दिक्कत होगी तभी तो तेरे प्रतिनिधियों की आंखें खुलेंगी, ऐसे थोड़े ही जागेंगे वो।’’
मुझे गुस्सा आ गया, कहां तो मैं समझ रहा था कि भगवान मुझ पर कृपा करने के लिये मेरे सामने आए हैं, लेकिन यहां तो मामला बिलकुल ही उलटा है। मैं भड़क गया, ‘‘भगवान ये आप अच्छा नहीं कर रहे हैं। केवल चढ़ावे के लिये आप इस्तीफा नहीं दे सकते।’’
‘‘केवल चढ़ावा नहीं......। हमारी और मांगें भी हैं। और अगर मांगें पूरी नहीं हुई तो मैं और मेरा पूरा डिपार्टमेन्ट जल्द ही दो दिनों के सामूहिक अवकाश पर जाएंगे, और अगर फिर भी हमारी मांगें नहीं मानी गई तो हम सामूहिक इस्तीफा देंगे। और फिर आम जनता को जो परेशानी होगी, उसकी जिम्मेदारी हमारी नहीं होगी, तुम्हारे प्रतिनिधियों की होगी।’’
‘‘भगवान इस्तीफा तो समझ आता है, लेकिन ये अवकाश वाली बात समझ नहीं आई।’’
‘‘तभी तो तुझे आम इंसान कहते हैं। कभी कभी हम भी अवकाश पर जाते हैं, ये बात अलग है कि आम इंसान को ये बात समझ नहीं आती, लेकिन तुम्हारे प्रतिनिधियों को सब पता होता है। हमने एक दिन का अवकाश लेकर तुम्हारे प्रतिनिधियों को चेता दिया, कि एक दिन के अवकाश में तो जापान में सुनामी आ गई थी, दो दिनों के अवकाश और उसके बाद इस्तीफे से क्या होगा।’’
‘‘जापान में सुनामी। लेकिन उसमें में तो भारी तबाही हुई थी।’’
‘‘उसके जिम्मेदार हम नहीं हैं। तुम्हारे प्रतिनिधि इसके लिये जिम्मेदार हैं।’’
‘‘लेकिन हमारे प्रतिनिधियों ने इस पर दुख व्यक्त किया था।’’
‘‘बस दुख व्यक्त ही किया था। हमारी मांगें पूरी नहीं की थी। तुम जाकर अपने प्रतिनिधियों को चेता देना कि हमारी मांगें मान लो, वरना पहले दो दिन का अवकाश और फिर इस्तीफा।’’
‘‘भगवान, आम जनता का क्या होगा।’’
‘‘धूर्त, मैंने पहले कह दिया कि मुझे उसका अफसोस है।’’
‘‘लेकिन...’’
भगवान ने मेरी बात काट दी, ‘‘धूर्त, मैंने तुझे पहले कह दिया है कि मुझे तुझसे कोई बात नहीं करनी। तुझे तो मैं बस चेताने आया था।’’ इतना कहकर भगवान अंतर्धान हो गये।
‘‘भगवान, भगवान, भगवान.....।’’
तभी मेरी नींद खुल गयी। सामने देखा तो अखबार पड़ा था, जिसमें लिखा था ‘‘12 और 13 जुलाई को डाॅक्टर अवकाश पर’’

Sunday, July 26, 2009

करगिल से मुम्बई तक

अभी कहीं ये चर्चा चल रही थी कि करगिल युद्व के दस सालों में हमने क्या हासिल किया। बातों का सिलसिला थोड़ा लम्बा चला तो उस वक्त के तमाम दावे याद आ गये जैसे पाकिस्तान का दुनिया के नक्शे से हटा देंगे, आतंकवाद का खात्मा कर देंगे, अब कोई भी ऐसी हिमाकत नहीं कर सकेगा, अब किसी निर्दोष को अपनी जान नहीं गंवानी पड़ेगी वगैरह वगैरहलेकिन आखिरकार वहां बैठे लगभग सभी लोग इस बात से सहमत थे कि हमने दस सालों में मुम्बई हमला हासिल किया। ये बात सिर्फ एक नुक्कड़ की थी पता नहीं पूरे देश में लोग क्या सोचते हैं।

Friday, September 12, 2008

भारत इसलिए एल ओ सी पार नहीं करता.

अभी एक ब्लॉग पर पोस्ट पढ़ी कि भारत एल ओ सी क्यों पार नहीं कर सकता जबकि अमेरिका में बुश अपनी फौज को बॉर्डर पार कर पाकिस्तान में घुसने कि आज्ञा दे सकते हैं, तो जहाँ तक मैं सोचता हूँ भारत एल ओ सी पार इसलिए नहीं कर सकता है क्योंकि बहुत सारे कारण हैं जो भारत को बॉर्डर पार कर के आतंक वादियों से लड़ने से रोकते हैं।

भारत एल ओ सी पार कर नहीं मार सकता क्योंकि :-

१- भारत गौतम और गाँधी का देश है जो अहिंसा में यकीन करता है।

२- एल ओ सी और दूसरी सीमायें अनपढ़ लोग या आतंकवादी पार करते हैं या वो जो दादागिरी दिखाते हैं वो। भारत एक शिक्षित, शान्ति प्रिय, और सभ्य देश है।

३- एल ओ सी पार करना कोई वक्तव्य देने जैसा नहीं है, एल ओ सी पार करने के लिए जिगर होना चाहिए।

४- एल ओ सी पार करके हमको क्या मिलेगा, १९४७, १९६५, १९७१ की लडाइयों में बॉर्डर पार करके हमने कौन सा तीर मार लिया।

५- एल ओ सी पार करने पर चुनाव के लिए कोई फायदा नहीं होगा, क्योंकि वहां कोई वोटर नहीं है तो वोटों के लिहाज़ से कोई फायदा नहीं होने वाला है।

६- एल ओ सी पार करते समय वहां कोई मीडिया वाला शायद नहीं पहुँच पाये तो टी वी, अख़बारों में ख़बर नहीं आयेगी और आपकी सारी मेंहनत ख़राब चली जायेगी।

७- एल ओ सी पार करने में कितना समय व्यर्थ होगा इतने में तो कितने धरने, प्रदर्शन, बंद करवाए जा सकते हैं।

अब आप ही बताइए कि एल ओ सी पार करके हमें क्या मिलेगा।

Thursday, August 21, 2008

ऊप्स

जल्दी सुबह उठने के कई फायदे हैं। लेकिन सुबह जल्दी ब्लॉग लिखने के कुछ नुक्सान भी हैं। जैसे आज मेरे साथ हुआ। मैंने अपनी पिछली पोस्ट में लिखा कि आज राजस्थान में पेट्रोल पम्पों की हड़ताल का दूसरा दिन है। पर हड़ताल ख़त्म हो चुकी थी।
तो आइन्दा से कोशिश करूँगा कि सुबह अखबार पढ़े बिना कोई पोस्ट न लिखूं।
पर मुझे खुशी है कि हड़ताल की वजह से एक और दिन डिस्टर्ब होने से बच गया। और उम्मीद (झूठी उम्मीद ) ये की आगे से ये बेवजह के बंद , चक्का जाम ( मतलब कि तथाकथित सामाजिक चेतना अभियान ) नहीं होंगे। और मुझे एक और दिन बंद पे अपना ब्लॉग नहीं लिखना पड़ेगा।
आज सुबह की पोस्ट के लिए ........................... ऊप्स।

हड़ताल, बंद और चक्का जाम

झील पे पानी बरसता है मेरे देस में । खेत पानी को तरसता है मेरे देस में।
दीवानों और पागलों के सिवा और कौन हंसता है मेरे देस में।

और मुझे फिर से हँसी आ रही है।

क्योंकि आज राजस्थान में पेट्रोल पम्पों की हड़ताल का दूसरा दिन है। सुनने में आ रहा है की आने वाले वक्त में कुछ और तरह की हड़तालें और चक्का जाम प्रस्तावित हैं।

तो एन्जॉय कीजिये इन हड़तालों को, चक्का जामों को, बन्दों को और अगर वक्त मिल जाए तो कभी कभी इस देश के बारे में भी सोच लिया करें या उसके लिए भी हड़ताल करनी पड़ेगी ।

Tuesday, August 19, 2008

इग्नोर मत करना, वरना १२ साल के लिए अनलकी हो जाओगे.

टुडे इज साईं बाबा'ज बर्थडे । इग्नोर मत करना नहीं तो १२ साल तक अनलकी हो जाओगे। ११ लोगों को ये एस.एम्.एस. भेजो। रात तक अच्छी ख़बर आएगी। नोट जोकिंग। ट्राई दिस।
ये मेसेज साल में मेरे पास कम से कम २० बार अत है। और ऐसे ही कई मेसेज कभी किस नाम से कभी किस नाम से आते हैं । कई बार तो ये भी लिखा होता है की ये मेसेज प्रभु के दरबार से सीधा आ रहा है। तो प्रभु की इस कृपा को नमस्कार कर के मैं मेसेज फॉरवर्ड कर देता हूँ। क्या पता कब प्रभु की दया सीधे मुझ पे हो जाए। अभी तक तो हुई नहीं पर कभी न कभी ज़रूर होगी ये ही सोच के फिर से मेसेज फॉरवर्ड कर देता हूँ।
पर कभी कभी सोचता हूँ कि इस सब से किसी को फायदा हो या न हो पर मोबाइल कंपनियों को फायदा ज़रूर होता है। चलिए किसी को तो फायदा होता ही है।
विशेष सूचना :-
फॉरवर्ड दिस ब्लॉग पोस्ट तो ११ पीपुल। इग्नोर मत करना वरना १२ साल के लिए अनलकी हो जाओगे।
इस ब्लॉग पोस्ट पे कमेन्ट करे। इग्नोर मत करना वरना १२ साल के लिए अनलकी हो जाओगे।
इस ब्लॉग के बारे में और लोगों से बात करे। इग्नोर मत करना वरना १२ साल के लिए अनलकी हो जाओगे।
रोजाना इस ब्लॉग की पोस्ट पढ़ा करें। इग्नोर मत करना वरना १२ साल के लिए अनलकी हो जाओगे।
ये मेसेज सीधे 'इंडियन ड्रीम्स' ब्लॉग से आ रहा है।
इग्नोर मत करना।
कुछ साल बाद अच्छी ख़बर आ सकती है।
ट्राई दिस। नोट जोकिंग।

Friday, August 15, 2008

वक्त वक्त का फेर

देखिये जी ये सब वक्त वक्त की बात है, वक्त की वजह से ही बड़े बड़े करोड़ पति, रोड पतियों में तब्दील हो गए। पर आज के दिन मुझे पतियों की बात नहीं करनी चाहिए, क्योंकि आज तो स्वतंत्रता की बात करनी है ............... की नहीं।
मैं कह रहा था कि वक्त के साथ सब कुछ बदल जाता है, अब जैसे देखिये अगर आज १५ अगस्त नहीं होता और १४ फरवरी होता, या मित्रता दिवस होता, तो लोग एस. एम. एस की भीड़ लगा देते पर आज १५ अगस्त था, इसलिए मेरे मोबाइल के इन्बोक्स में बस दो एस एम एस ए हैं पहला कल रात को भेजा गया था लेट पहुँचा और दूसरा मोबाइल कंपनी की ओर से भेजा गया था।
वक्त वक्त की बात है।

(वैसे सही सही बताऊँ की ये मैसेज अभी अभी मुझे मेरे मोबाइल पे मिला था। )