मुझे गर्व है और ये गर्व दिन पर दिन बढ़ता ही जा रहा है, मैंने बहुत कोशिश की पर क्या करूँ, दिल है की मानता ही नहीं है। चलिए मुद्दे की बात पे आते हैं की गर्व है तो किस बात का। तो देखिये जी बात ऐसी है की कुछ साल पहले की बात है की मैंने पेपर में पढ़ा कि दिल्ली में एक विदेशी महिला एक गंदे नाले की बदबू से बेहोश हो गयी। एक पल को पढ़के बुरा लगा पर जब मैंने ख़बर का छुपा हुआ मतलब समझा तो मेरा सीना गर्व से चौड़ा हो गया, मैं सोचने लगा कि हम उस विदेशी महिला से कितने महान हैं, हमारी सहन शक्ति कितनी ज़बरदस्त है, हम लोग बचपन से लेकर जवानी से लेकर बुढापे तक नाना प्रकार की बदबूएँ सूंघते हैं पर हमारी सहन शक्ति की दाद देनी होगी कि मैंने कभी नहीं सुना कि फलां फलां व्यक्ति 'नाले' या 'नाली' की बदबू से बेहोश हो गया या हो गयी। चाहे वो बच्चा हो या बड़ा सभी इस तरह की छोटी मोटी बदबूएँ तो बर्दाश्त करते रहते हैं। और वो विदेशी........ हुंह ........ ये मुहं और मसूर की दाल। और मैं अपने देश की सहनशीलता की व्याख्या में खो गया। कितने महान हैं हम, कितने महान हैं हमारे पूर्वज, कितनी महान होगी हमारी आने वाली नस्लें।
कुछ दिनों बाद मैंने सुना की आतंकवाद इतना बढ़ गया है की आतंकवादी किस रूप में हमला करदें कह ही नहीं सकते, हो सकता है की वो किसी जहरीली गैस से हमला कर दे तो डोंट चिंता नोट फिकर, वो गैस हमारा कुछ नहीं बिगाड़ पायेगी, हमारे नाले, नालियों से उन गैसों से ज़्यादा बुरी बदबू निकलती है। मैं तो कहता हूँ कि दूसरे देशों को भी हमसे कुछ सीखना चाहिए । हमारा देश हमेशा से विश्व गुरु रहा है , इसने कई बातें दुनिया को सिखाई हैं। इस बार भी हमारा ये फार्मूला काम आयेगा।
१५ अगस्त करीब है मतलब कि कल ही है इसलिए मैं गर्व करने के कुछ और कारण ढूंढता हूँ, अगर आपको भी पता चले तो आप भी जन जन तक इस सूचना को प्रसारित करें और अपना कर्तव्य पूरा करें।
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2 comments:
बिल्कुल सटीक लिखा है आपने..
बेहतरीन आलेख.
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