Thursday, August 14, 2008

गर्व करने के कुछ और कारण

अभी कुछ देर पहले मैंने आपको गर्व करने का एक कारण बताया था, अब कुछ और कारणों की बात कर लेते हैं, भारत किसी और चीज़ पर इतना गर्व नहीं कर सकता जितना सहनशीलता पर। १९४७ में भारत आजाद हुआ आजाद होते ही हमारे पडौसी देश ने (मतलब छोटे भाई ने ) हम पर हमला कर दिया। और चूंकि हम नियमों से चलने वाले (अर्थात अनुशाषित ) व्यक्तित्व के स्वामी हैं इसलिए हमने पाकिस्तान को हराते हुए भी संयुक्त राष्ट्र को बीच बचाव के लिए बुला लिया। नतीजा कश्मीर का एक हिस्सा हमारे छोटे से पडौसी देश (मतलब छोटे भाई) ने दबा लिया।

वक्त बीता और १९६२ आ गया, हमारे दूसरे पडौसी देश ( मतलब बड़े भाई ) ने हम पे हमला कर दिया और हम 'हिन्दी चीनी भाई भाई' बोलते रहे, और हमारे दूसरे पडौसी देश ( मतलब बड़े भाई ) ने भी कुछ ज़मीन दबा ली। अफ़सोस तो बहुत हुआ पर एक संतोष ये ही था की घर की ज़मीन घर में ही रह गयी, कभी छोटे भाई (एक ही मां के दो बेटों में से एक ) के पास तो कभी बड़े भाई (हिन्दी चीनी भाई भाई वाले भाई साब ) के पास।

फिर और वक्त बीता, वैसे वक्त तो बीतता ही है इसकी चाल को कोई नहीं रोक सकता, पर हमारे पडौसी की चाल को हमने रोक लिया। मतलब १९६५ में फिर से हमारे पडौसी देश ने पे हमला कर दिया और हम 'हिन्दी चीनी भाई भाई' बोलते रहे, और हमारे दूसरे पडौसी देश ( मतलब बड़े भाई ) ने भी कुछ ज़मीन दबा ली। अफ़सोस तो बहुत हुआ पर एक संतोष ये ही था की घर की ज़मीन घर में ही रह गयी, कभी छोटे भाई (एक ही माँ के दो बेटों में से एक ) के पास तो कभी बड़े भाई (हिन्दी चीनी भाई भाई वाले भाई साब ) के पास।
फिर और वक्त बीता, वैसे वक्त तो बीतता ही है इसकी चाल को कोई नहीं रोक सकता, पर हमारे पडौसी की चाल को हमने रोक लिया। मतलब १९६५ में फिर से हमारे पडौसी देश ने हम पर हमला कर दिया, हमने मुहं तोड़ जवाब दिया, और हमारी फौजों ने दुश्मन के घर में घुस कर उसे ये जवाब दिया। पर फिर से हमने क्या पाया पता नहीं पर क्या खोया पूरी दुनिया को पता है, हमारे प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री को।
वक्त बीतता है उसे तो बीतना ही है मैं और आप उसे नहीं रोक सकते हैं, और हम इस बार भी हमारे पडौसी को नहीं रोक पाये पर इस बार हमने हमारे पडौसी मुल्क को दो टुकडों में बाँट दिया, पूर्वी पाकिस्तान का नाम नक्शे पे से गायब हो गया। बंगला देश का उदय हुआ। पाकिस्तान के लिए करारी चोट, उनके ९५ हज़ार से ज़्यादा सैनिक हमारे पास युद्ध बंदी की रूप में थे। पर हमने क्या पाया इन ९५ हज़ार सैनिकों के बदले में हम हमारे कश्मीर को आज़ाद नहीं करा पाए।
९० के दशक में हमने क्या क्या खोया, शायद उन के बारे में बार करना यहाँ बेमानी है। फिर हुआ कारगिल । हमारे पडौसी देश ने घुसपैठ करके हमारी ज़मीन पे फिर से कब्ज़ा जमा लिया। हमने उन्हें फिर से खदेड़ दिया, पर कीमत भी चुकानी पड़ी। ५०० से ज़्यादा हिन्दुस्तानी जवानों ने अपनी कुर्बानी दी। जिस पर हर हिन्दुस्तानी फक्र कर सकता है। पर क्या हमने वाकई हिसाब बराबर कर लिया, एक देश ने दूसरे देश पे हमला कर दिया और हमने खली उनको खदेड़ कर अपना कोटा पूरा कर लिया। इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं था की ये सब हुआ तो क्यों और इसके लिए जिम्मेदार मुल्क को क्या सज़ा मिलनी चाहिए। अगर हमारी जगह अमेरिका , रूस या इजराइल होता और कोई उन पर यूँ हमला कर देता और वो यूँ ही बैठे रहते....... । बिल्कुल नहीं इसीलिए तो मुझे गर्व है की हमारी सहन शक्ति का मुकाबला दुनिया का कोई देश नहीं कर सकता। चाहे हमारे हवाई जहाज को कोई हाई जैक ही क्यों न करले ।
मगर वाह रे मेरे देश , मेरे देश की सहन शक्ति। हम फिर भी चुप बैठे रहे। मुझे वाकई में इतना गर्व है अपनी सहन शक्ति पे की मेरे पास शब्द ही नहीं हैं।
इस बीच एक बार वो देश जिसे हमने आज़ादी दिलवाई थी मतलब की बंगला देश उसने भी हमारी सहन शक्ति की पूरी परीक्षा ली और मुझे गर्व है की इस बार भी हम अपनी इस परीक्षा में खरे उतरे भले ही हमारी सेना के कुछ लोगों की बंगला देशी सेना वाले यातनाएं दे के हत्या ही कर दे । लेकिन हम यहाँ भी पूरे संयम से काम लेते हैं, हमने नियमों के अनुसार ( शायद जिनेवा समझौते के अनुसार) रिपोर्ट दर्ज करवा दी। और उन क्षत विक्षत शवों को उनके परिजनों को सौंप दिया। लेकिन हमने तब भी धीरज नहीं खोया।
धीरज हमने तब भी नहीं खोया जब हमारी संसद पे हमला हुआ था। हमारे कुछ सिपाहियों के खेत रहने के बाद भी हमने संयम नहीं खोया, हमने किसी प्रकार की कोई भड़काने वाली कार्रवाई नहीं की । हाँ बस अपनी सेना को सीमा पर ले जा के खड़ा कर दिया। और पूरे धीरज के साथ पडौसियों को सूचित कर दिया की शायद हम आप पर हमला कर सकते हैं। पर मेरे महान देश तू इस परीक्षा की घड़ी में भी खरा उतरा । हमने इस बार भी धीरज नहीं खोया। मेरे गर्व की कोई सीमा नहीं है।
जब जयपुर में बम पते तब भी हमने पूरे धीरज का परिचय दिया। बेंगलुरु में भी यही किया और अहमदाबाद में भी यही किया । तो इस से बड़ा गर्व करने का और क्या कारण चाहिए। मेरे गर्व की कोई सीमा नहीं है।
(परन्तु इस ६१ वें स्वतंत्रता दिवस पर मेरी यही इच्छा है की भविष्य में कभी मुझे इस बारे में गर्व करने का कोई मौका न मिले )
आखिर में आप सभी को १५ अगस्त की बहुत बहुत शुभ कामनाएं ।

3 comments:

Udan Tashtari said...

स्वतंत्रता दिवस की आपको भी बहुत बधाई एवं शुभकामनाऐं.

राज भाटिय़ा said...

स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाऐं ओर बहुत बधाई आप सब को

दिनेशराय द्विवेदी said...

आजाद है भारत,
आजादी के पर्व की शुभकामनाएँ।
पर आजाद नहीं
जन भारत के,
फिर से छेड़ें संग्राम
जन की आजादी लाएँ।